• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
  • Login
  • Login

Blogs Posts

Blog Home Page

Recent Blogs

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 78): जीवन-साधना, जो कभी असफल नहीं जाती
यह दैवी उपलब्धि किस प्रकार संभव हुई। इसका एक ही उत्तर है— पात्रता का अभिवर्द्धन। उसी का नाम जीवन-साधना है। उपासना के साथ उसका अनन्य एवं घनिष्ठ संबंध है। बिजली धातु में दौड़ती है, लकड़ी में नहीं। आग सूखे को जलाती है, गीले को नहीं। माता बच्चे को गोदी तब लेती है, जब वह साफ-सुथरा हो। मल-मूत्र से सना हो तो पहले उसे धोएगी; पोंछेगी। इसके बाद ही गोदी में लेने और दूध पिलाने की बात करेगी। भगवान की समीपता के लिए शुद्ध चरित्र आवश्यक है। कई व्यक्ति पिछले जीवन में तो मलीन रहे हैं, पर जिस दिन से भक्ति की साधना अपनाई, उस दिन से अपना कायाकल्प कर लिया। वाल्मीकि, अंगुलिमाल, विल्वमंगल, अजामिल आदि पिछले जीवन में कैसे ही क्यों न रहे हों, जिस दिन से भगवान की शरण में आए, उस दिन से सच्चे अर्थों में संत बन गए। हम लोग ‘...
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 77): जीवन-साधना, जो कभी असफल नहीं जाती
बालक की तरह मनुष्य सीमित है। उसे असीम क्षमता उसके सुसंपन्न सृजेता भगवान से उपलब्ध होती है, पर यह सशर्त है। छोटे बच्चे वस्तुओं का सही उपयोग नहीं जानते, न उनकी सँभाल रख सकते हैं। इसलिए उन्हें दुलार में जो मिलता है, हलके दरजे का होता है। गुब्बारे, झुनझुने, सीटी, लेमनचूस स्तर की विनोद वाली वस्तुएँ ही माँगी और पाई जाती हैं। प्रौढ़ होने पर लड़का घर की जिम्मेदारियाँ समझता और निबाहता है। फलतः बिना माँगे उत्तराधिकार का हस्तांतरण होता जाता है। इसके लिए प्रार्थना-याचना नहीं करनी पड़ती। न दाँत निपोरने पड़ते हैं और न नाक रगड़नी पड़ती है। जितना हमें माँगने में उत्साह है, उससे हजार गुना देने में उत्साह भगवान को और महामानवों को होता है। कठिनाई एक पड़ती है, सदुपयोग कर सकने की पात्रता विकसित हुई या नहीं? इस संदर्भ म...
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 76): उपासना का सही स्वरूप
गायत्री माता की सत्ता— कारणशरीर में श्रद्धा, सूक्ष्मशरीर में प्रज्ञा और स्थूलशरीर में निष्ठा बनकर प्रकट होने लगी। यह मात्र कल्पना ही तो नहीं है, इसके लिए बार-बार कठोर आत्मपरीक्षण किया जाता रहा है। देखा कि आदर्श जीवन के प्रति— समष्टि के प्रति अपनी श्रद्धा बढ़ रही है या नहीं। इनके लिए प्रलोभनों और दबावों से इनकार कर सकने की स्थिति है या नहीं। समय-समय पर घटनाओं के साथ जोड़कर भी परख की गई और पाया गया कि भावना परिपक्व हो गई है। उसने अपना स्वस्थसाधन श्रद्धा का वैसा ही बना लिया है, जैसा कि ऋषिकल्प साधक बनाया करते थे। गायत्री माता मात्र स्त्रीशक्ति के रूप में छवि दिखाती हैं। अब प्रज्ञा बनकर विचार संस्थान पर आच्छादित हो चलीं। इसका जितना बन पड़ा, विश्लेषण किया जाता रहा। अनेक प्रसंगों पर हमने परखा भी है क...
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 75): उपासना का सही स्वरूप
हमें ऐसा ही करना पड़ा है। भगवान की उपासना गायत्री माता का जप और सविता पिता का ध्यान करते हुए करते रहे। भावना एक ही रखी है कि श्रवण कुमार की तरह आप दोनों को तीर्थयात्रा कराने के आदर्श का परिपालन करेंगे। आपसे कुछ माँगेंगे नहीं, आपके सच्चे पुत्र कहला सकें, ऐसा व्यक्तित्व ढालेंगे। आपकी निकृष्ट संतान जैसी बदनामी न होने देंगे। ध्यान की सुविधा के लिए गायत्री को माता और सविता को पिता माना तो सही, पर साथ ही यह भी अनुभव किया कि वे सर्वव्यापक और सूक्ष्म हैं। इसी मान्यता के कारण उनको अपने रोम-रोम में और अपना उनकी हर तरंग में घुल सकना संभव हो सका। मिलन का आनंद इससे कम में आता ही नहीं। यदि उन्हें व्यक्तिविशेष माना होता तो दोनों के मध्य अंतर बना ही रहता और घुलकर आत्मसात् होने की अनुभूति होने में बाधा ही बनी...
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 74): उपासना का सही स्वरूप
समझा जाना चाहिए कि जो वस्तु जितनी महत्त्वपूर्ण है, उसका मूल्य भी उतना ही अधिक होना चाहिए। प्रधानमंत्री के दरबार का सदस्य बनने के लिए पार्लियामेंट का चुनाव जीतना चाहिए। उपासना का अर्थ है— पास बैठना। यह वैसा नहीं है, जैसा कि रेलगाड़ी के मुसाफिर एकदूसरे पर चढ़ बैठते हैं, वरन् वैसा है, जैसा कि दो घनिष्ठ मित्रों को दो शरीर एक प्राण होकर रहना पड़ता है। सही समीपता ऐसे ही गंभीर अर्थों में ली जानी चाहिए। समझा जाना चाहिए कि इसमें किसी को किसी के लिए समर्पण करना होगा। चाहे तो भगवान अपने नियम, विधान, मर्यादा और अनुशासन छोड़कर किसी भजनानंदी के पीछे-पीछे नाक में नकेल डालकर फिरें और जो कुछ भला-बुरा वह निर्देश करे, उसकी पूर्ति करते रहें; अन्यथा दूसरा उपाय यही है कि भक्त को अपना जीवन भगवान की मरजी के अनुरूप बनान...
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 73):  उपासना का सही स्वरूप
भूल यह होती रही है कि जो पक्ष इनमें सबसे गौण है, उसे ‘पूजा-पाठ’ की उपासना मान लिया गया और उतने पर ही आदि-अंत कर लिया गया। पूजा का अर्थ है— हाथों तथा वस्तुओं द्वारा की गई मनुहार, दिए गए छुट-फुट उपचार, उपहार। पाठ का अर्थ है— प्रशंसापरक ऐसे गुणगान, जिसमें अत्युक्तियाँ ही भरी पड़ी हैं। समझा जाता है कि ईश्वर या देवता कोई बहुत छोटे स्तर के हैं। उन्हें प्रसाद, नैवेद्य, नारियल, इलायची जैसी वस्तुएँ कभी मिलती नहीं। पावेंगे तो फूलकर कुप्पा हो जाएँगे। जागीरदारों की तरह प्रशंसा सुनकर चारणों को निहाल कर देने की उनकी आदत है। ऐसी मान्यता बनाने वाले, देवताओं के स्तर एवं बड़प्पन के संबंध में सर्वथा बेखबर होते और बच्चों जैसा नासमझ समझते हैं, जिन्हें इन्हीं खिलवाड़ों में फुसलाया-बरगलाया जा सकता है। मनोकामना पूरी क...
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 72): महामानव बनने की विधा, जो हमने सीखी-अपनाई
उचित होगा कि आगे का प्रसंग प्रारंभ करने के पूर्व हम अपनी जीवन-साधना के— स्वयं की आत्मिक प्रगति से जुड़े तीन महत्त्वपूर्ण चरणों की व्याख्या कर दें। हमारी सफल जीवनयात्रा का यही केंद्रबिंदु रहा है। आत्मगाथा पढ़ने वालों को इस मार्ग पर चलने की इच्छा जागे; प्रेरणा मिले, तो वे उस तत्त्व दर्शन को हृदयंगम करें, जो हमने जीवन में उतारा। अलौकिक रहस्य-प्रसंग पढ़ने-सुनने में अच्छे लग सकते हैं, पर रहते वे व्यक्तिविशेष तक ही सीमित हैं। उनसे ‘हिप्नोटाइज’ होकर कोई उसी कर्मकांड की पुनरावृत्ति कर हिमालय जाना चाहे, तो उसे कुछ हाथ न लगेगा। सबसे प्रमुख पाठ जो इस कायारूपी चोले में रहकर हमारी आत्मसत्ता ने सीखा है, वह है— सच्ची उपासना, सही जीवन-साधना एवं समष्टि की आराधना। यही वह मार्ग है, जो व्यक्ति को नरमानव से देवमानव...
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 71): मथुरा के कुछ रहस्यमय प्रसंग
यह रहस्यमयी बातें हैं। आयोजन का प्रत्यक्ष विवरण तो हम दे चुके हैं। पर जो रहस्यमय था, सो अपने तक सीमित रहा है। कोई यह अनुमान न लगा सका कि इतनी व्यवस्था, इतनी सामग्री कहाँ से जुट सकी। यह सब अदृश्य सत्ता का खेल था। सूक्ष्मशरीर से वे ऋषि भी उपस्थित हुए थे, जिनके दर्शन हमने प्रथम हिमालय यात्रा में किए थे। इन सब कार्यों के पीछे जो शक्ति काम कर रही थी, उसके संबंध में कोई तथ्य किसी को विदित नहीं। लोग इसे हमारी करामात-चमत्कार कहते रहे। भगवान साक्षी है कि हम जड़भरत की तरह— मात्र दर्शक की तरह यह सारा खेल देखते रहे। जो शक्ति इस व्यवस्था को बना रही थी, उसके संबंध में कदाचित् ही किसी को कुछ आभास हुआ हो। तीसरा काम जो हमें मथुरा में करना था, वह था— गायत्री तपोभूमि का निर्माण। इतने बड़े कार्यक्रम के लिए छोटी इ...
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 70): मथुरा के कुछ रहस्यमय प्रसंग
गायत्री परिवार का संगठन करने के निमित्त, महापुरश्चरण की पूर्णाहुति के बहाने हजार कुंडी यज्ञ मथुरा में हुआ था। उसके संबंध में यह कथन अत्युक्तिपूर्ण नहीं है कि इतना बड़ा आयोजन महाभारत के उपरांत आज तक नहीं हुआ। उसकी कुछ रहस्यमयी विशेषताएँ ऐसी थीं, जिनके संबंध में सही बात कदाचित् ही किसी को मालूम हो। एक लाख नैष्ठिक गायत्री उपासक देश के कोने-कोने में से आमंत्रित किए गए। वे सभी ऐसे थे, जिनने धर्मतंत्र से लोक-शिक्षण का काम हाथों-हाथ सँभाल लिया और इतना बड़ा हो गया, जितने कि भारत के समस्त धार्मिक संगठन मिलकर भी पूरे नहीं होते। इन व्यक्तियों से हमारा परिचय बिलकुल न था। पर उन सबके पास निमंत्रण-पत्र पहुँचे और वे अपना मार्ग-व्यय खरच करके भागते चले आए। यह एक पहेली है, जिसका समाधान ढूँढ़ पाना कठिन है। दर्शकों...
Read More
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 69): मथुरा के कुछ रहस्यमय प्रसंग
प्रारंभ में मथुरा में रहकर जिन गतिविधियों को चलाने के लिए हिमालय से आदेश हुआ था, उन्हें अपनी जानकारी की क्षमता द्वारा कर सकना कठिन था। न साधन, न साथी, न अनुभव, न कौशल। फिर इतने विशाल काम किस प्रकार बन पड़े? हिम्मत टूटती-सी देखकर मार्गदर्शक ने परोक्षतः लगाम हाथ में सँभाली। हमारे शरीर भर का उपयोग हुआ। बाकी सब काम कठपुतली नचाने वाला बाजीगर स्वयं कराता रहा। लकड़ी के टुकड़े का श्रेय इतना ही है कि तार मजबूती से जकड़कर रखे और जिस प्रकार नाचने का संकेत हुआ, वैसा करने से इनकार नहीं किया। चार घंटे नित्य लिखने के लिए निर्धारण किया। लगता रहा कि व्यास और गणेश का उदाहरण चल पड़ा। पुराण-लेखन में व्यास बोलते गए थे। ठीक वही यहाँ हुआ। आर्षग्रंथों का अनुवाद-कार्य अतिकठिन है। चारों वेद, 108 उपनिषदें, छहों दर्शन, चौब...
Read More
Categories
11
51 Kundiya Gayatri Mahayagya1
Akhand Jyoti971
Awgp News3
Awgp Videos | Hariye Na Himmat | हारिये न हिम्मत1
Bal Sanskar1
Bal Sanskar Shala1
Bal_Sanskar_Shala_Abhiyan1
Bhartiya Sanskriti Gyan Pariksha1
Book विचारों की सृजनात्मक शक्ति1
Book संस्मरण जो भुलाए न जा सकेंगे1
Book हमारी युग निर्माण योजना 1
Catalist Of Change5
Chetna Kendra1
Delhi - Ncr2
Dr. Chinmay Pandya3
Dsvv14
Environment1
Exhibition1
Gahna Karmanogati1
Gayatri Mahayagya1
Gayatri Yagya1
Gujarat5
Gurudev69
Gurudev296
Gurudev Amrut Vanni8
Hamari Vasiyat Aur Virasat80
Jeevan Jine Ki Kala77
Jeevan Ka Arth77
Jeevan Kaushal78
Jeevan Lakshya79
Jeevan Mantra77
Jeevan Mulya78
Jeevan Parichay79
Jeevan Path75
Jeevan_Sadhana73
Jeevan Sadhna75
Jeevan Shaily75
Jeevan Shakti73
Jharkhand4
Kalash Yatra2
Karma1
Kumbh1
Madhya Pradesh7
Maharashtra16
Mumbai Ashwamedh Yagya 40
Odisha1
Parv / Festival3
Prachar - Prasaar1
Pragya Abhiyan10
Rajasthan4
Sadhna Abhiyan4
Sanskar1
Services1
Shantikunj18
Shok Sandesh2
Students1
Tree Plantation1
Uttarakhand8
Uttar Pradesh4
Vangmay4
Videsh / Abroad7
West Bengal1
Yagya20
Yagya Campaign2
Yug Sahitya95
अदभुत आश्चर्यजनक किन्तु सत्य88
अध्यात्म 524
आज का सद्चिंतन278
आत्मचिंतन के क्षण77
कहानियां 70
कहानियाँ प्रज्ञा पुराण से60
गायत्री और यज्ञ 27
जीवन जीने की कला570
नवरात्रि 19
पर्व एवम त्योहार2
प्रज्ञा पुराण (भाग 1)1
विचार क्रांति323
स्वास्थ्य2

View count

107845948

Popular Post

मौनं सर्वार्थ साधनम
Dec. 22, 2023, 12:13 p.m.
मौन साधना की अध्यात्म-दर्शन में बड़ी महत्ता बतायी गयी है। कहा गया है “मौनं सर्वार्थ साधनम्।” मौन रहने से सभी कार्य पूर्ण होते हैं। महात्मा गाँधी कहते ...
Read More
प्रयागराज महाकुम्भ में 13 जनवरी से प्रारंभ हो रहा है गायत्री परिवार का शिविर
Jan. 9, 2025, 5:59 p.m.
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से प्रारंभ हो रहे विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजन महाकुंभ में गायत्री परिवार द्वारा शिविर 13 जनवरी से प...
Read More
अध्यात्मवाद
Dec. 9, 2023, 4:10 p.m.
वर्तमान की समस्त समस्याओं का एक सहज सरल निदान है- ‘अध्यात्मवाद’। यदि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक जैसे सभी क्षेत्रों में अध्यात्मवाद का समावेश कर ...
Read More
आद डॉ पंड्या आबूधाबी UAE में -संयुक्त राष्ट्र के अंग AI Faith & Civil Society Commission के मुख्य प्रवक्ता
Feb. 27, 2024, 6:14 p.m.
मुम्बई अश्वमेध महायज्ञ के सफल आयोजन के उपरान्तअखिल विश्व गायत्री परिवार प्रतिनिधि एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या ज...
Read More
आत्मबल
Jan. 14, 2024, 10:44 a.m.
महापुरुष की तपस्या, स्वार्थ-त्यागी का कष्ट सहन, साहसी का आत्म-विसर्जन, योगी का योगबल ज्ञानी का ज्ञान संचार और सन्तों की शुद्धि-साधुता आध्यात्मिक बल का...
Read More
देश दुनिया में हो रहा युग चेतना का विस्तार ः डॉ चिन्मय पण्ड्या
July 12, 2024, 5:53 p.m.
आदरणीय डॉ चिन्मय पण्ड्या जी अपने सात दिवसीय विदेश प्रवास के बाद आज स्वदेश लौटे। हरिद्वार 12 जुलाई। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय ...
Read More
जहर की पुड़िया रखी रह गई
April 19, 2024, 12:25 p.m.
मेरे दादा जी की गिनती इलाके के खानदानी अमीरों में होती थी। वे सोने-चाँदी की एक बड़ी दुकान के मालिक थे। एक बार किसी लेन-देन को लेकर दादाजी और पिताजी में...
Read More
स्नेह सलिला, परम श्रद्धेया जीजी द्वारा एक विशाल शिष्य समुदाय को गायत्री मंत्र से दीक्षा
Feb. 23, 2024, 4:03 p.m.
गुरु का ईश्वर से साक्षात संबंध होता है। गुरु जब अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा का कुछ अंश शिष्य को हस्तांतरित करता है तो यह प्रक्रिया गुरु दीक्षा कहलाती है।  ग...
Read More
मूर्खता के लक्षण
July 1, 2024, 9:55 a.m.
मूर्खता के लक्षण छोड़ेंगे तब सद्गुण धारण कर सकेंगे. आगे ऐसे कई मुर्ख के लक्षण बताए गए थे, और भी कुछ लक्षण यहाँ बताए है, श्री समर्थ रामदास स्वामी कहते ह...
Read More
श्रद्धेयद्वय द्वारा मुंबई अश्वमेध महायज्ञ के सफलतापूर्वक समापन के बाद शांतिकुंज लौटी टीम के साथ समीक्षा बैठक
March 4, 2024, 9:39 a.m.
देश एवं दुनिया अब भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रही है।हमारे ऋषियों द्वारा प्रदत्त सांस्कृतिक धरोहर की ओर अब दुनिया चलने लगी है। उक्त विचार शांतिकु...
Read More
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj